Saturday, 31 October 2020

कहानी एक जुमले की....

 सुगम्य भारत अभियान, एक ऐसा जुमला...जिसपर हँसी से ज़्यादा रोना आता हैl  

3 दिसम्बर 2015 में हुई थी इसकी शुरुआत, पर यकीन मानिए, 5 साल बाद, आज भी इसकी comic-timing  जस कि तस हैलेकिन इसपर हँसने के बजाये रोना इसलिए आता है, क्योंकि यह उसी का मज़ा उडाता है, जिसके  लिए इसे बनाया गया

विडंबना तो दिखिए, जिन दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु यह अभियान चलाया जा रहा है, उन्हीं लोगों को दिव्यांग प्रमाण पत्र, यानी कि  Disability Certificate,  बनवाने के लिए भी सरकारी एवं ज़िला अस्पतालों कि पहली दूसरी, या तीसरी मंज़िल तक चढ़कर जाना पड़ता है! और यही नहीं, सरकारी दफ्तरों के बाहर बनें  so called ramps आज भी उतने ही उबड़-खाबड़ हैं, जितने कि पहले थेऔर मज़े कि बात पता हैं क्या है: आज भी इन ramps को वही निक्कमें लेकिन highly qualified engineers  बनाते हैं जो अक्सर basic norms और standards को  follow करना ही भूल जाते हैं

अरे साहब! ऐसे बहुत से उदहारण हैं, जो भारत को दिव्यांगों के लिए सुगम्य’ से ज़्यादा दुर्गम बनाते हैं l  But who cares? हमने तो अपना काम कर दिया ? अब किसीका फायदा हो या नुक्सान...उससे हमें क्या? पर जानते हैं, असली मज़ा तो तब आएगा, जब भारत और उसकी सरकार,इस जुमले को  गंभीरता से लेगी और ये जुमला रहकर एक जनसैलाब बन जाएगा




8 comments:

  1. Ati uttam.. Itni achi hindi and itne uttam vichar se ye blog likha hai. I loved it.

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    1. आपके प्रोत्साहन से भरे शब्दों के लिए कोटी-कोटी धन्यवाद! :)

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  2. Hundreds of such Abhiyaan are finalized in papers n speeches only just to make fool of public but people are strong enough to face the situations themselves !

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    1. Very Well said! No doubt, people are strong enough to face the situations themselves, but a country which aims to become a 'Vishva Guru' and boast of being the largest democracy in the world, should and must strive relentlessly towards making such 'Abhiyaans' a success!

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