सुगम्य भारत अभियान, एक ऐसा जुमला...जिसपर हँसी से ज़्यादा रोना आता हैl
3 दिसम्बर 2015 में हुई थी इसकी शुरुआत, पर यकीन मानिए, 5 साल बाद, आज भी इसकी comic-timing जस कि तस हैl लेकिन इसपर हँसने के बजाये रोना इसलिए आता है, क्योंकि यह उसी का मज़ाक उडाता है, जिसके लिए इसे बनाया गयाl
विडंबना तो दिखिए, जिन दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु यह अभियान चलाया जा रहा है, उन्हीं लोगों को दिव्यांग प्रमाण पत्र, यानी कि Disability Certificate, बनवाने के लिए भी सरकारी एवं ज़िला अस्पतालों कि पहली दूसरी, या तीसरी मंज़िल तक चढ़कर जाना पड़ता है! और यही नहीं, सरकारी दफ्तरों के बाहर बनें so called ramps आज भी उतने ही उबड़-खाबड़ हैं, जितने कि पहले थेl और मज़े कि बात पता हैं क्या है: आज भी इन ramps को वही निक्कमें लेकिन highly qualified engineers बनाते हैं जो अक्सर basic norms और standards को follow करना ही भूल जाते हैंl
अरे साहब! ऐसे बहुत से उदहारण हैं, जो भारत को दिव्यांगों के लिए ‘सुगम्य’ से ज़्यादा दुर्गम बनाते हैं l But who cares? हमने तो अपना काम कर दिया न ? अब किसीका फायदा हो या नुक्सान...उससे हमें क्या? पर जानते हैं, असली मज़ा तो तब आएगा, जब भारत और उसकी सरकार,इस जुमले को गंभीरता से लेगी और ये जुमला न रहकर एक जनसैलाब बन जाएगाl